बाघरायडीह में नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा पूर्णाहुति के साथ हुई संपन्न
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*बाघरायडीह में नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा पूर्णाहुति के साथ हुई संपन्न* खरसावां प्रखंड अंतर्गत बाघरायडीह श्री हरि मंदिर प्रांगण में कल नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा पूर्णाहुति के साथ संपन्न हुई। ज्ञात हो कि बाघरायडीह व आस पास क्षेत्र के लोगों की सुख शांति व समृद्धि के उद्देश्य से गत दिनांक 26 फरवरी को वैदिक मंत्रोचारण के साथ शुरू हुए श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन हवन आहुति देकर कथा का समापन किया गया। भागवत कथा का ज्ञान रूपी रस का अमृत पान कर रहे क्षेत्र के महिला पुरुष श्रद्धालुओं ने अपने परिवार के सुख शांति व समृद्धि के लिए भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना किए। इसके बाद कीर्तन मंडली द्वारा संकीर्तन किया गया। पूजा के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया। ज्ञात हो कि प्रत्येक दिन आयोजन कमेटी के द्वारा भंडारा का आयोजन कर श्रद्धालुओं को खिचड़ी भोग खिलाया गया। इस धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन से बाघरायडीह व आस पास क्षेत्र में भक्तिमय का माहौल बन गया।भागवत कथा सुनने के लिए बाघरायडीह व आस पास के सैकड़ों श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ी । इस अवसर पर श्रीभागवत के मुख्य कथा वाचक पंडित रामनाथ होता ने बताया कि श्रीमद्भागवत पुराण ऋषि व्यास द्वारा रचित हिन्दुओं के सबसे प्रसिद्ध अट्ठारह पुराणों में से एक श्रेष्ठ पुराण है। इस पुराण में 335 अध्याय ,12 स्कंध,18 हजार श्लोक है। इसका मुख्य विषय आध्यात्मिक योग और भक्ति चेतना को जागृत करना है। इस पुराण में भगवान् श्री कृष्ण को सभी देवों में श्रेष्ठ माना गया है। इस पुराण में रस भाव की भक्ति का चित्रण बहुत ही सूंदर तरीके से किया गया है। इस पुराण के प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण के बारे में सम्पूर्ण चित्रण किया गया है।
श्रीमद्भागवत कथा में ज्ञान, भक्ति, तथा वैराग्य की महानता के बारे में बताया गया है। इस पुराण में विद्या का अक्षय भंडार है। यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण व सुख देने वाला है। श्रीमतभगवत कथा सर्वप्रथम ऋषि व्यास के पुत्र सुखदेव जी द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया था।
भागवत कथानुसार पंडित रामनाथ होता ने बताया कि राजा परीक्षित अपने बड़े पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक कर, मुक्ति के लिए अपने गुरु से आज्ञा लेकर ऋषि व्यास पुत्र सुकदेव जी के आश्रम में पहुंच गए। ऋषि सुकदेव जी ने राजा को श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराया जिससे की राजा को मोक्क्ष प्राप्त हुआ। श्राप के कारण सातवे दिन सर्प दंश से राजा परक्षित की मृत्यु हो जाती हैं। लोगो का ऐसा मानना हैं कि तभी से भागवत सप्ताह सुनने की शुरुआत हुई है। उक्त भागवत कथा के सफल आयोजन में मुख्य कथावाचक पंडित रामनाथ होता, मनु प्रधान, पंचानन महतो,बसंत प्रधान, अजीत प्रधान, कृष्ण प्रधान, दिनेश प्रधान, नागेश्वर प्रधान, हेमसागर प्रधान, सुरेन प्रधान, डॉक्टर प्रधान, सागर प्रधान,सारंगधर ग्वाला,तमरो प्रधान, मुरली प्रधान, दुर्योधन प्रधान, माधव प्रधान,जीवन प्रधान समेत समस्त ग्रामीणों का योगदान सराहनीय रहा।